Add To collaction

कागज़ लेखनी कविता -13-Jun-2023

आज़ दिनांक १३.६.२४ को प्रदत्त विषय,' कागज़ ' पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति,
कागज़
--------------------------------------------
कागज़ ही तो तब आपसी संवाद का आधार।
दूरभाष तो थे नहीं,कागज़ से चलता था व्यापार।।

हमारी शादी के पहले,माॅं को एक लड़की पसन्द आयी।
रोज चिट्ठी लिखता था मैं,मेल ट्रेन से भेजी जायी।।

जवाब का रहता इन्तज़ार, चिट्ठी सादी पोस्ट से आती थी।
मन करता पिटाई कर दूं पोस्ट मैंन की जो गर्दन ना मे हिलाई थी।।

एकबार तो पोस्टमैन को मैंने  रुपये पचास ईनाम दिया।
दो चिट्ठी लाया था वो उस दिन होने वाली पत्नी की।।

कागज़ की महत्ता तो कम कभी न हो सकती।
बैंक काम,अदालती काम सभी कागज़ पर चलते हैं।।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

   0
0 Comments